What is CrPC ? , दंड प्रक्रिया संहिता क्या हैं ? - एक परिचय

What is CrPC ? , दंड प्रक्रिया संहिता क्या हैं ? - एक परिचय 

CrPC 1973


                दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973- दंड प्रक्रिया संहिता दंड विधि का अभिन्न अंग है। दण्ड प्रक्रिया संहिता विधि के प्रवर्तन के लिये यंत्र जैसा काम करती है। 

CrPC सन 1861 में बनी थी जिसमे समय-समय पर संशोधन होते रहे तथा तत्पश्चात 1896 में नई CrPC बनी जो सन् 1973 तक प्रवर्तन में रही दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 में (कुल धाराएं- 484 अनुसूची-2 अध्याय-37) इसके पश्चात् सन् 1974 की 25 जनवरी को संसद अधिनियम-2 के द्वारा नई CrPC का उद्भव हुआ तब से वर्तमान में यह चली आ रही है।


CrPC में  2005 में संशोधन हुआ। दिनांक 16 अप्रैल, 2006 में राष्ट्रपति ने संशोधन पर हस्ताक्षर किये तथा 23 जून 2006 से संशोधन लागू हो गये।। 


दण्ड प्रक्रिया संहिता की विशेषताएं 

(संविधान के नीति निदेशक तत्वों के अनुसरण में) -

1. कार्यपालिका और न्यायपालिका का पृथक्करण

2. जूरी विचारण की समाप्ति।

3. शीघ्र विचारण (धारा 167 व धारा 309)।

4. अभियुक्त स्वयं भी सक्षम साक्षी के रूप में पेश हो सकता है (धारा 315) !

5. निःशुल्क विधिक सहायता का प्रावधान (धारा 304 ) ।

6. अद्वितीय विशेषताऐं- किसी अभियुक्त की जांच, विचारण एवं अन्वेषण के दौरान निरुद्ध की गई अवधि का अन्तिम दण्डादेश की अवधि में से (Set off) मुजरा किया जाना (धारा 428) 

7. वाद कालीन आदेशों के विरुद्ध पुनरीक्षण न किया जाये और सेशन न्यायाधीश उच्च न्यायालय की भांति स्वयं भी पुनरीक्षण शक्ति का प्रयोग करे।

8. तुच्छ मामलो में अभियुक्त की न्यायालय में उपस्थिति आवश्यक नहीं है. अपराध स्वीकार करने पर जुर्माने को डाक से भी भेज सकता है। 

9 त्वरित न्याय के लिये अपराधों के संज्ञान की परिसीमा निर्धारित (परिसीमाकाल के बाद संज्ञान वर्जित)।

10. अभियुक्त की दोषसिद्धी पर न्यायाधीश द्वारा अभियुक्त को दण्ड के प्रश्न पर सुनने के बाद विधि के अनुसार दण्डादेश देना। 

सीआरपीसी की कमजोरी 

1. सरकार द्वारा अभियोजन को वापस लिया जाना (धारा 321)।

2. अन्तर्वर्ती आदेशों की अपील या पुनरीक्षण को समाप्त किया जाना 

 

सीआरपीसी  के अध्याय 8, 10 व 11 को छोड़कर अन्य उपबन्ध नागालैण्ड राज्य व आसाम के जनजाति क्षेत्रों में लागू नहीं है।



0 टिप्पणियाँ