CrPC Sec-1 Introduction

CrPC Sec 1 Introduction, Section-2 Definitions, Crpc धारा 1 संक्षिप्त परिचय, धारा 2 परिभाषाएँ


धारा 1  : संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ

नाम :- "दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973", CrPC 1973

विस्तार :- सम्पूर्ण भारत में लागू है। Nagalend & Assam Trible Area को छोड़कर

प्रवर्तन :- 01 अप्रैल, 1974

CrPC कहाँ-कहाँ लागू नहीं है ?
  • इस संहिता के अध्याय 8, 10 व 11 को छोड़कर अन्य उपबन्ध नागालैण्ड, राज्य व आसाम के जनजाति क्षेत्रों में लागू नहीं है।

अध्याय 8 - परिशान्ति कायम रखने और सदाचार के लिये प्रतिभूति-धारा 106 से 124

अध्याय 10 - लोक व्यवस्था और परिशान्ति बनये रखना -धारा 129 से 148

अध्याय 11-पुलिस का निवारक कार्य-धारा 149  से 153

  • इस संहिता की धारा 5 में वर्णित विशेष अधिकारिता वाले न्यायालयों में या विशेष प्रक्रिया पर CrPC लागू नहीं है!

जैसे TADA न्यायालय की प्रक्रिया पर POTA न्यायालय की प्रक्रिया,

Excise act, NDPS Act आदि ।

CrPC Sec-2 Definitions

धारा 2 (a) जमानतीय अपराध (Bailable Offence) :

वे अपराध जिन्हें CrPC की प्रथम अनुसूची या तत्समय प्रवृत अन्य विधि में जमानतीय अपराध घोषित
किया गया है।

धारा 2 (b) आरोप (Charge) :

मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त पर उसके द्वारा किये गये अपराध का लिखित कथन आरोप है।
जब आरोप में एक से अधिक शीर्ष हों, आरोप का कोई भी शीर्ष है।

धारा 2 (c) संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) :-

ऐसा मामला या अपराध जिसमें पुलिस अधिकारी अभियुक्त को बिना वारण्ट गिरफ्तार कर सकता है
तथा आवश्यक अन्य कार्यवाहियां भी कर सकता है।

धारा 2 ( d) परिवाद (इस्तगासा)(Complaint) :-

पुलिस रिपोर्ट से भिन्न किसी मजिस्ट्रेट को लिखित या मौखिक में किसी व्यक्ति के द्वारा उसके
विरूद्ध ज्ञात या अज्ञात व्यक्ति द्वारा किये गये अपराध के बारे में एक सूचना है
(धारा 190, धारा 201 से 203 ) ।
स्पष्टीकरण :- यदि किसी संज्ञेय मामले को विचारण के पश्चात असंज्ञेय अपराध होना पाया जाता है तो पुलिस रिपोर्ट (FIR) परिवाद हो जायेगा और पुलिस अधिकारी परिवादी हो जायेगा। 

धारा 2 (e) उच्च न्यायालय (High Court )

किसी राज्य में दण्डिक अपील का सबसे बड़ा न्यायालय उच्च न्यायालय होता है।
उच्च न्यायलय की शक्तियां :
1. आरम्भिक अपराध का क्षेत्राधिकार ।
2. राज्य का सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय ।
3. पुनरीक्षण, निर्देश देने की शक्ति ।
4. मृत्यु दण्ड की पुष्टि ।
5. कोई भी दण्ड व कितना भी जुर्माना लगाने की शक्ति ।
6. मामला अन्तरण करने की शक्ति ।
7. अधीनस्थ न्यायालयों पर नियन्त्रण तथा नियम बनाने की शक्ति ।

धारा 2 (g) जांच (Inquiry ) :-

विचारण से भिन्न किसी मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा किसी बात सत्यतता का पता लगाने के लिये
की गई कार्यवाही जांच है।

धारा 2 (h) अन्वेषण (Investigation) :-

पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति के द्वारा अभियुक्त या अपराध के बारे में
साक्ष्य एकत्र करने के लिये की गई कार्यवाही अन्वेषण है।

धारा 2 (n) अपराध (Offence) :-

कोई कार्य या लोप जिसे तत्समय प्रवृत विधि द्वारा दण्डनीय बनाया गया हो।

धारा 2 (I) असंज्ञेय अपराध (Non Cognizable Offence ) :-

ऐसा अपराध जिसमें पुलिस अधिकारी वारण्ट के बिना गिरफ्तार करने के लिये प्राधिकार नहीं है,
असंज्ञेय अपराध है।

धारा 2 (r) पुलिस रिपोर्ट (Police Report) 

पुलिस थाने के भार साधक अधिकारी या पुलिस अधिकारी द्वारा धारा 173 ( 2 ) के अन्तर्गत मजिस्ट्रेट
को दी जाने वाली अन्तिम रिपोर्ट पुलिस रिपोर्ट कहलाती है। इसे चालान भी कहते हैं। इसमें FIR
भी शामिल है।

धारा 2 (u) लोक अभियोजक :-

सरकार की ओर से न्यायालय में अभियोजन / अपील / अन्य कार्यवाही के लिये धारा 24 CrPC में
नियुक्त या उक्त व्यक्ति के अधीन कार्य करने वाला व्यक्ति लोक अभियोजक कहलाता है  P.P./APP

धारा 2 (w) समन मामला :- 

ऐसा अपराध या मामला जो वारंट मामला नहीं है तथा वारंट से निम्न मामला जिसमें 2 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है

धारा 2 (wa) पीड़ित :-

ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे उस कार्य या लोप के कारण कोई हानि या क्षति कारित हुयी है, जिसके लिए अभियुक्त व्यक्ति पर आरोप लगाया गया है और पीड़ित व्यक्ति के अर्न्तगत उसका संरक्षक या विधिक वारिस भी है ।

धारा 2 ( x ) वारंट मामला :-

ऐसा अपराध या मामला जो समन मामला नहीं है। समन मामला से भिन्न मामला जो मृत्यु, आजीवन कारावास या 2 वर्ष से अधिक के कारावास के दण्डनीय हो ।

(i) जमानत (Bail) क्या हैं? :-

किसी गिरफ्तार व्यक्ति या अभियुक्त की पुलिस या मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा अन्वेषण, जांच या
विचारण के दौरान सशर्त रिहाई जमानत कहलाती है।

(ii) प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) 
क्या हैं?

इस संहिता में स्पष्ट रूप से FIR की परिभाषा नहीं है। केवल मात्र इसकी परिकल्पना है जो धारा
  • 154 में वर्णित है। अतः किसी व्यक्ति के द्वारा मौखिक या लिखित ज्ञात / अज्ञात व्यक्ति द्वारा संज्ञेय अपराध के बारे में भारसाधक अधिकारी को कार्यवाही करने हेतु दी गई प्रपत्र सूचना FIR है।
  • इस सूचना को पुलिस अधिकारी राज्य सरकार द्वारा निमित रजिस्टर में लिखेगा।
  • उक्त सूचना के लिखने के बाद उस पर सूचना देने वाले के हस्ताक्षर करवायेगा ।
  • इसकी एक प्रति उस सूचना देने वाले को निशुल्क उपलब्ध करवायेगा।

(iii) समन  क्या हैं?

समन केवल एक बुलावा है जो  असंज्ञेय अपराधों के बारे में होता है तथा उस व्यक्ति उपस्थित होने तथा वस्तु या दस्तावेज को पेश करने के लिये जारी किया जाता है 
  • यह दो प्रतियों में होता है |
  • न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के हस्ताक्षर तथा न्यायालय की मोहर होनी चाहिऐ।
  • इसमें व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता ।
  • प्रेषित व्यक्ति से भिन्न परिवार के सदस्यों पर भी तामील हो सकती है।
  • यह तलाशी के लिये जारी नहीं किया जा सकता । 
  • रजिस्टर्ड डाक से भी तामील करवाई जा सकती है
  • प्रतिस्थापित तामील का उपबन्ध है। जैसे अखबार में प्रकाशित करना 

(iv) वारण्ट ( Warrant)  क्या हैं?

वारंट एक आदेश है जो मुख्य रूप से संज्ञेय अपराधों में जारी किया जाता है। वारंट प्रेषित व्यक्ति से भिन्न अन्य व्यक्ति पर तामील नहीं की जा सकती अन्य क्षेत्राधिकारी में निष्पादन करवाने हेतु  उस क्षेत्र के मजिस्ट्रेट को डाक से भेजा जा सकता है, परन्तु इस अवस्था में वारंट दो प्रति में होगा
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